Friday 7 October 2011

रावण अभी भी जीवित है


सम्पूर्ण देश में कल बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक विजयादशमी का उत्सव मनाया गया और बुराई के प्रतीक रावण का पुतला बड़े उत्साह से जलाया गया. सारा देश श्री भगवान राम के जय घोष से गूंज रहा था.

आज सुबह समाचार पत्र में एक समाचार पढ़ कर मन क्षुब्ध होगया और लगा कि हमारी सोच कि हमने बुराई पर विजय पा ली है कितनी गलत है. रावण के पुतले का जलते समय अट्टाहास कानों में गूंजने लगा, कि मेरा पुतला जलाने से क्या फायदा में तो तुम्हारे बीच अब भी जीवित हूँ. दिल्ली में रावण दहन देखने के पश्चात दो लड़कियां अपने भाई के साथ लौट रहीं थीं तब एक गाड़ी में जा रहे कुछ लड़कों ने लड़की से छेड़छाड़ की और उसे गाड़ी में खीचने के कोशिश की. लड़की  के शोर मचाने पर लड़की के भाई और कुछ राहगीरों ने लड़कों को पकड़ कर पुलिस को सौंप दिया.

यह घटना एक बहुत गंभीर प्रश्न उठाती है कि हमारे प्राचीन उत्सवों को मनाने के पीछे जो भावना और उद्देश्य थे उन सब को भुलाकर क्या हम उन्हें केवल मौज मस्ती मनाने का अवसर बना कर रह गये हैं? उन उत्सवों को मनाने के पीछे जो सामाजिक उद्देश्य थे, क्या हम उनसे अनजान हो गये हैं? क्यों हमारी सोच ने होली, दिवाली, दशहरा जैसे पवित्र त्योहारों को एक विकृत रूप दे दिया है?

विजयादशमी के दिन हम बुराई के प्रतीक रावण का पुतला तो अवश्य जलाते हैं, लेकिन यह भूल जाते हैं कि यह पुतला प्रतीक है उन सब बुराइयों का जो हमारे समाज और हमारे मन के अन्दर व्याप्त हैं. जब तक ये बुराइयां हमारे अन्दर व्याप्त हैं, तब तक रावण समाज में इसी तरह आज़ादी से घूमता रहेगा. अगर हम इन बुराइयों को नष्ट करने के लिये अपने अंतस के राम को नहीं जगायेंगे तो केवल रावण का पुतला दहन करने मात्र से कुछ नहीं होगा.