श्री विजय कुमार जी का कहानी संग्रह ‘एक थी
माया’ हाथ में आते ही उसके आवरण ने मंत्र मुग्ध कर एक माया लोक में पहुंचा
दिया. जब मैं पुस्तक के पृष्ठ पलट ही रहा था कि मेरी धर्म पत्नी जी मेरे हाथ से पुस्तक लेकर देखने
लगीं और बोलीं कि विजय जी की नयी पुस्तक है. मुझे विश्वास था कि उन्हें लम्बी
कहानियां पढ़ने का धैर्य नहीं है और उनकी रूचि केवल कविताओं और लघु कथाओं तक ही
सीमित है, इसलिए पुस्तक शीघ्र ही मेरे हाथों में वापिस आ जायेगी. लेकिन जब वे पृष्ठ पलटना बंद करके
कहानियाँ पढ़ने लगीं तो मुझे आश्चर्य हुआ, लेकिन सोचा कुछ पृष्ठ पढ़ कर अपने आप वापिस
कर देंगी. जब एक घंटे तक पुस्तक नहीं मिली तो मैंने उनसे वह पुस्तक माँगी तो
उन्होंने कहा कि मैं पढ़ कर ही दूंगी. यद्यपि मैं विजय जी कि कुछ कहानियों से पहले
से ही वाकिफ़ था लेकिन जब उन्होंने पूरी पुस्तक पढ़ कर मुझे वापिस दी तो मुझे
विश्वास हो गया कि इस कहानी संग्रह की कहानियों में अवश्य कुछ ऐसा है जो किसी को
भी अपनी और आकर्षित करने की क्षमता रखता है.
विजय जी की कहानियां एक वृहद कैनवास पर जीवन के
विभिन्न आयामों को अनेक रंगों में चित्रित करती हैं जिसमें रूहानी प्रेम का रंग
सबसे प्रमुख है. कहानियों को पढ़ते हुए भूल जाते हैं कि कहानी में जीवन है या जीवन में
कहानी है. कहानी के चरित्रों से पाठक पूरी तरह आत्मसात हो जाता है और कई बार लगता
है कि यह तो मेरी कहानी है और यह किसी भी कहानी की सफलता का सशक्त मापदंड है. सभी
कहानियों का कथ्य, शैली, चरित्र चित्रण, और कथा विन्यास सबसे सशक्त पक्ष है.
एक आम आदमी की अभावग्रस्त ज़िंदगी के छोटे छोटे
मासूम अहसास और देह से परे निश्छल अनुभूतियाँ, प्रेम और जीवन की आधारभूत ज़रूरतों
के बीच संघर्ष और दोनों के बीच पिसता इंसान और उसकी भावनाओं का एक मर्मस्पर्शी
चित्रण है ‘एक थी माया’. शरीर से परे भी एक प्रेम है और मिलन ही प्रेम का
अंतिम उद्देश्य नहीं, इसे माया ने बहुत गहराई से समझा है “ऐसा कोई दिन नहीं जब मैं
तुम्हें याद नहीं करती हूँ, पर तुम नहीं होकर भी मेरे पास ही रहते हो.”
‘मुसाफ़िर’ एक छोटी सी कहानी जीवन में प्रेम से बिछुड़ने और मिलन के लम्बे इंतजार
की ऐसी मर्मस्पर्शी कहानी है जिसका अंत आँखें नम कर जाता है.
जब नारी के असंतुष्ट विवाहित जीवन में उसका अतीत
फिर से जीवंत हो कर आ जाता है और वह निश्चय नहीं कर पाती की घर की देहरी पार करे
या नहीं, उसके मानसिक संघर्ष को चित्रित करती ‘आठवीं सीढ़ी’ एक सशक्त कहानी
है. एक लम्बी कहानी होते हुए भी लेखक की चरित्रों, कथानक और भावनाओं पर पकड़ इतनी
मज़बूत है कि कहानी कहीं भी उबाऊ नहीं हो पाई और अंत तक पाठक की रोचकता बनी रहती
है. नायिका के अतीत के साथ जुड़ने और वर्तमान हालात से असंतुष्टि के बीच मानसिक
संघर्ष का जो उत्कृष्ट मनोवैज्ञानिक चित्रण है वह कहानी का सबसे सशक्त पक्ष है. यहाँ
भी प्रेम का रूहानी पक्ष प्रखरता से उभर कर आया है. “प्रेम का कैनवास बहुत बड़ा
होता है, उसे जीना आना चाहिए, न कि ज़िंदगी में उसकी कमी से भागना. यही सच्चा प्रेम
है और इसी को ईश्वरीय प्रेम कहते हैं...”
प्रेम में हर बार चोट खाने पर भी अपने स्वाभिमान
को बरकरार रख कर जीने की कोशिश और प्रेम की तलाश है एक भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी
कहानी ‘आबार एशो’. “श्रीकांत बहुत देर तक उसे देखता रहा. फिर धीरे से कहा,
‘तुम बहुत बरस पहले मुझसे नहीं मिल सकती थीं, अनिमा?’ अनिमा ने कहा, ‘ज़िंदगी के
अपने फैसले होते हैं, श्रीकांत.’ ’’ शायद यही ज़िंदगी का सबसे बड़ा सत्य है.
ऐतिहासिक प्रष्ठभूमि पर एक विश्वसनीय कहानी लिखना
और उस समय का वातावरण, भाषा, रहन सहन, लोकाचार एवं चरित्रों को जीवंत करना एक आसान
कार्य नहीं है. लेकिन कहानीकार अपनी कहानी ‘आसक्ति से विरक्ति की ओर’ में इसमें
पूर्ण सफल रहा है. बुद्धकालीन प्रष्ठभूमि में लिखी कहानी में बुद्ध के संदेशों को न
केवल आत्मसात किया है बल्कि उन्हें बहुत गहनता से कहानी में इस कुशलता से ढाला है कि
वह कहानी का ही एक अभिन्न अंग बन गए हैं.
“बुद्ध ने आगे कहा, ‘हम अपने विचारों से ही स्वयं
को अच्छी तरह ढालते हैं; हम वही बनते हैं जो हम सोचते हैं, जब मन पवित्र होता है
तो ख़ुशी परछाई की तरह हमेशा हमारे साथ चलती है, सत्य के रास्ते पर चलने वाला
मनुष्य कोई दो ही ग़लतियाँ कर सकता है, या तो वह पूरा सफ़र तय नहीं करता या सफ़र की
शुरुआत ही नहीं करता, मनुष्य का दिमाग ही सब कुछ है, जो वह सोचता है वही बनता है,
और यही सच्चा सन्यास है.’ “
आधुनिकता और भौतिक सम्रद्धि के पीछे भागते युग
में अकेलेपन की त्रासदी झेलती बुजुर्गों की कहानी ‘चमनलाल की मौत’ केवल एक
कहानी नहीं बल्कि ऐसी कटु सच्चाई है जो हर रोज़ हम अपने आस पास देखते हैं. आधुनिक
पीढ़ी द्वारा दिया अकेलेपन का दंश झेलते जाने कितने बुज़ुर्ग एक पल के प्यार को तरसते
हैं अपने ज़िन्दगी के अंतिम पल तक. “ ...लेकिन यह कोई नहीं समझ पाता कि हम बूढों को
पैसे से ज्यादा प्यार चाहिए. अपनों का अपनापन चाहिए. हमें ज़िंदगी नहीं मारती;
बल्कि एकांत ही मार देता है.” आज के कटु सत्य को दर्शाती कहानी आँखों को नम कर
जाती है.
प्रसिद्धि और नाम पाने के लिए व्यक्ति क्या क्या
कर सकता है इस पर ‘अटेंशन’ एक बहुत सटीक और रोचक व्यंग है और इस बात का
सबूत है कि विजय जी केवल गंभीर कहानी लिखने में ही कुशल नहीं हैं, वे व्यंग के भी
सिद्धहस्त चित्रकार हैं.
‘टिटलागढ की एक रात’ कहानी में कहानीकार ने भय, रोमांच, सस्पेंस के वातावरण का कुशलता से
ऐसा ताना बुना बुना है कि आप कहानी के प्रवाह के साथ बहते चले जाते हैं और आपकी
तर्क शक्ति और व्यक्तिगत सोच बिल्कुल कुंद हो जाती है. कहानी ‘willing suspension of disbelief’ का एक उत्कृष्ट उदाहरण है.
जब दाम्पत्य जीवन में शक का कीड़ा सर उठाने लगे तो
तो उसके परिणाम कितने दुखद हो सकते हैं इसको बहुत मार्मिक रूप से प्रस्तुत करती है
कहानी ‘दी परफ़ेक्ट मर्डर’. दाम्पत्य जीवन परस्पर विश्वास के धागे में बंधा
होता है और जब यह धागा टूट जाता है तो समय निकल जाने पर पश्चाताप करने के लिए भी
अवसर नहीं मिलता. कहानी का प्रस्तुतिकरण बहुत प्रभावी और मर्मस्पर्शी है.
‘मैन इन यूनिफ़ॉर्म’ एक सैनिक के दिल के दर्द की कहानी है जो देश के लिए अपनी जान दे देता
है लेकिन कुछ नहीं बदलता न देश में न लोगों की सोच में. सटीक प्रश्न, क्या है एक
जवान की शहादत की कीमत, उठाती और अंतस को आंदोलित करती एक सशक्त कहानी.
लेखक की कथानक, चरित्रों, भावों और प्रस्तुतीकरण
पर पकड़ बहुत मज़बूत है और किसी भी कहानी का कला या भाव पक्ष कमजोर नहीं पड़ता. लेखक
का यह प्रथम कहानी संग्रह है और विश्वास है कि उनकी कलम से ऐसे नायाब उपहार पाठकों
को मिलते रहेंगे.
ख़ूबसूरत आवरण और उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए प्रकाशक
बधाई के पात्र हैं. १५९ पृष्ठ की पुस्तक का मूल्य है रु.२५० जिसे प्राप्त करने के
लिए लेखक से संपर्क किया जा सकता है.
विजय कुमार,
मोबाइल : 09849746500
ईमेल : vksappatti@gmail.com