सम्पूर्ण देश में कल बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक विजयादशमी का उत्सव मनाया गया और बुराई के प्रतीक रावण का पुतला बड़े उत्साह से जलाया गया. सारा देश श्री भगवान राम के जय घोष से गूंज रहा था.
आज सुबह समाचार पत्र में एक समाचार पढ़ कर मन क्षुब्ध होगया और लगा कि हमारी सोच कि हमने बुराई पर विजय पा ली है कितनी गलत है. रावण के पुतले का जलते समय अट्टाहास कानों में गूंजने लगा, कि मेरा पुतला जलाने से क्या फायदा में तो तुम्हारे बीच अब भी जीवित हूँ. दिल्ली में रावण दहन देखने के पश्चात दो लड़कियां अपने भाई के साथ लौट रहीं थीं तब एक गाड़ी में जा रहे कुछ लड़कों ने लड़की से छेड़छाड़ की और उसे गाड़ी में खीचने के कोशिश की. लड़की के शोर मचाने पर लड़की के भाई और कुछ राहगीरों ने लड़कों को पकड़ कर पुलिस को सौंप दिया.
यह घटना एक बहुत गंभीर प्रश्न उठाती है कि हमारे प्राचीन उत्सवों को मनाने के पीछे जो भावना और उद्देश्य थे उन सब को भुलाकर क्या हम उन्हें केवल मौज मस्ती मनाने का अवसर बना कर रह गये हैं? उन उत्सवों को मनाने के पीछे जो सामाजिक उद्देश्य थे, क्या हम उनसे अनजान हो गये हैं? क्यों हमारी सोच ने होली, दिवाली, दशहरा जैसे पवित्र त्योहारों को एक विकृत रूप दे दिया है?
विजयादशमी के दिन हम बुराई के प्रतीक रावण का पुतला तो अवश्य जलाते हैं, लेकिन यह भूल जाते हैं कि यह पुतला प्रतीक है उन सब बुराइयों का जो हमारे समाज और हमारे मन के अन्दर व्याप्त हैं. जब तक ये बुराइयां हमारे अन्दर व्याप्त हैं, तब तक रावण समाज में इसी तरह आज़ादी से घूमता रहेगा. अगर हम इन बुराइयों को नष्ट करने के लिये अपने अंतस के राम को नहीं जगायेंगे तो केवल रावण का पुतला दहन करने मात्र से कुछ नहीं होगा.
सही कह रहे हैं आप ।
ReplyDeleteरावण दहन अब बस एक दिखावा बन कर रह गया है ।
बुराइयाँ रुपी रावणों की भरमार है यहाँ ।
Jab antahkaran mein ram virajman ho jayenge to ravan apne aap bhag jayega. Aakhir prakash ke samne andhkar ka kya astitva. shresht rachna
ReplyDeleteसचमुच केवल प्रतीकात्मक रावण दहन से कुछ नहीं होगा!
ReplyDeleteपोस्ट अच्छा लगा । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद .
ReplyDeleteVery unfortunate indeed. We have miles to go to achieve Ram raajya.
ReplyDeleteदीपावली के पावन पर्व पर आपको मित्रों, परिजनों सहित हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteway4host
RajputsParinay
तब रावण यदा कदा होते थे और जो होते थे दिखाई भी पड़ते थे और वो कभी भेष भी बदलते थे तो साधु का...परन्तु आज उनकी पहचान मुश्किल है....राम सा दिखने वाला कब रावण का रूप ले लेगा कह पाना मुश्किल है.....सार्थक लेख..!!
ReplyDeletesharmaa ji namaskaar , bahut din baad aapke blog par aai ...
ReplyDeletebahut hi sahi kaha aapane es lekh mai ...
रावण जीवित न होता तो उसे हर साल जलाने की आवश्यकता क्यों महसूस होती!
ReplyDeleteबेहद सामयिक मुद्दे पर चर्चा की है आपने..आज जबकि भारतीय समाज एक सामाजिक उथल पुथल से गुज़र रहा है, हमें यह ध्यान मे रखना चाहिए की हम अपनी सभ्यता की जड़ों में निहित अच्छाई और मानव मात्र (स्त्री और पुरुष) के प्रति सम्मान की शिक्षाओं को खो ना दें..
ReplyDeleteHappy Valentine Day Gifts
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