क्या
मैं सदैव सत्य बोलता हूँ? बोल
पाता हूँ? क्यूँ
? एक
ऐसा प्रश्न जिसका उत्तर आसान भी है और बहुत कठिन भी. बहुत
आसान है यह कहना कि जिसे मेरा मन या अंतरात्मा सच मानता है उसे मैं बिना किसी भय
या परिणाम की चिंता किये स्पष्ट कह देता हूँ, क्यूँ
कि ऐसा करने से मेरे मन को संतुष्टि मिलती है. लेकिन
क्या यह सत्य जिसे मेरा मन सत्य मानता है, वास्तव में सम्पूर्ण और सार्वभौमिक सत्य है? क्या
मेरी अंतरात्मा इतनी निर्मल और निर्पेक्ष है कि वह सत्य का मूल्यांकन कर सकती है? क्या
मेरी शिक्षा,
संस्कार,
ज्ञान-संचय, आसपास
के वातावरण, जीवन
अनुभवों आदि ने मेरी आत्मा को अपने आवरण से नहीं ढक रखा है, जिससे
मेरा सत्य का मूल्यांकन व्यक्तिगत, सापेक्ष हो गया है और इसको मैं शाश्वत
सत्य कैसे मन लूँ? फिर
मैं कैसे कैसे कह दूँ कि मैं हमेशा सत्य बोलता हूँ.
सत्य
क्या है एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर बहुत कठिन है. मैं
जो आँखों से देखता हूँ, कानों से सुनता हूँ वह केवल मेरा सापेक्ष, व्यक्तिगत, अर्ध सत्य
है. मैंने
जो देखा है उससे परे भी उस घटना के पीछे कोई सत्य छुपा हो सकता है जिससे मैं
अनभिज्ञ हूँ. इस
लिए मेरा देखा सुना सत्य कैसे सम्पूर्ण, सार्वभौमिक सत्य हो सकता है? हम
वस्तुओं और घटनाओं को उस तरह नहीं देखते जैसी वे हैं, बल्कि
उस तरह जैसा हम देखना चाहते हैं. प्रश्न उठता है कि सत्य क्या है. भारतीय
दर्शन के अनुसार ब्रह्म ही परम सत्य है जिसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता. अपनी
आत्मा को उस परम आत्मा से आत्मसात करके और उसमें स्वयं को समाहित करके ही उस
निर्पेक्ष परम सत्य का अनुभव कर सकते हैं. लेकिन इस सत्य का दर्शन और पालन एक
साधारण व्यक्ति के लिए संभव नहीं है. महात्मा गाँधी ने कहा था “सत्य
की खोज के साधन जितने कठिन हैं, उतने
ही आसान भी हैं। अहंकारी व्यक्ति को वे काफी कठिन लग सकते हैं और अबोध शिशु को
पर्याप्त सरल।“
हमें बचपन से सिखाया जाता है "सत्यम् ब्रूयात प्रियं ब्रूयात, न ब्रूयात सत्यम् अप्रियं", लेकिन
सत्य अधिकांशतः कड़वा होता है और अगर उसे प्रिय बनाना पड़े तो फिर वह सत्य कहाँ रहेगा, अधिक
से अधिक उसे चासनी में पगा अर्ध सत्य कह सकते हैं. अगर
सत्य अप्रिय है तो उसे न कहना क्या सत्य का गला घोटना नहीं है? अप्रिय
सत्य कहने के स्थान पर अगर मौन का दामन थाम लिया जाय तो क्या यह असत्य का साथ देना
नहीं होगा? ऐसे
हालात में क्या किया जाए? आज के समय जब चारों ओर स्वार्थ और असत्य का राज्य
है, कैसे
एक व्यक्ति केवल सत्य के सहारे जीवन में आगे बढ़ सकता है? लेकिन
इसका अर्थ यह नहीं कि कुछ पल की खुशी के लिए असत्य को अपना लिया जाये. सत्य
बोलना आसान है क्यों कि आपको याद नहीं रखना होता कि आपने पहले क्या कहा था, लेकिन
एक बार झूठ बोलने पर उस झूठ को छुपाने के लिए न जाने कितने झूठ बोलने पड़ते हैं.
अपने
व्यक्तिगत और कार्य क्षेत्र पर जब दृष्टिपात करता हूँ तो मेरे लिए यह कहना बहुत
कठिन होगा कि मैंने सदैव सत्य ही बोला या नहीं, लेकिन
इतना अवश्य कहूँगा कि मैंने अपने कार्यों और निर्णयों में निस्संकोच और बिना किसी
डर के वही निर्णय लिया जो मेरी अंतरात्मा ने तथ्यों के आधार पर सही माना और अपने
आप को और अपनी अंतरात्मा को कभी धोखा नहीं दिया. अपने
व्यक्तिगत और कार्य क्षेत्र में सदैव कोशिश की कि ऐसा कोई कार्य न करूँ जिसे मेरी
आत्मा सही स्वीकार नहीं करती. किसी को अपने शब्दों से चोट न पहुंचे
इस लिए कई बार सत्य कहने की बजाय मौन का दामन थाम लिया. किसी
को कुछ पल की खुशी देने के लिए असत्य का सहारा लेना मेरे लिये संभव नहीं, और
न ही ऐसे अप्रिय सत्य को कहना जिससे किसी को दुःख पहुंचे. यह
मेरा सत्य है और यह सत्य है या असत्य इसका निर्णय मैं भविष्य पर छोड़ता
हूँ. सार्वभौमिक
और शाश्वत सत्य की मंजिल अभी बहुत दूर है और जब सब अपने अपने सत्य के साथ जी रहे
हैं, ऐसे
हालात में मैं कैसे कहूँ कि सदैव सत्य बोला जा सकता है.
....©कैलाश
शर्मा
लगता है सत्य तक पहुँचना बहुत मुश्किल है जिंदगी झूठों का एक पुलिंद्दा है उससे पीछा छूटे तो सत्य क्या है खोजने की कोशिश भी की जाये ।
ReplyDelete" सत्यं ब्रूयात प्रियं ब्रूयात मा ब्रूयात सत्यं अप्रियम् ।" इसे निभाया जा सकता है कैलाश जी ! यही तो सूत्र है जो हमें समझना है और समझने के बाद व्यवहार में उतारना है । वस्तुतः तर्क कैंची की तरह है , इससे कभी कोई बात सुलझती नहीं , जिज्ञासा से ही इसका समाधान मिलेगा , आक्रोश से नहीं । आपके भीतर ही इसका समाधान मिलेगा ।
ReplyDeleteइनदिनों तो मुश्किल ही है। जीवन जटिल है बहुत।
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, आर्थिक संकट का सच... ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteआभार...
Deleteगहरा विमर्श ...
ReplyDeleteअसल में यह दुनिया 🌍 स्वयं में विकल्पों का समुच्चय है, इसलिए सत्य भी दुनियावी बन जाता है और यह कभी मीठा या कभी कड़वा हो जाता है।
ReplyDeleteअसल में यह दुनिया 🌍 स्वयं में विकल्पों का समुच्चय है, इसलिए सत्य भी दुनियावी बन जाता है और यह कभी मीठा या कभी कड़वा हो जाता है।
ReplyDeleteअसल में यह दुनिया 🌍 स्वयं में विकल्पों का समुच्चय है, इसलिए सत्य भी दुनियावी बन जाता है और यह कभी मीठा या कभी कड़वा हो जाता है।
ReplyDeleteवर्तमान समय में बड़ा कठिन सवाल है, एक अनबूझ पहेली के समान …गहन विषय
ReplyDeleteलेकिन इतना अवश्य कहूँगा कि मैंने अपने कार्यों और निर्णयों में निस्संकोच और बिना किसी डर के वही निर्णय लिया जो मेरी अंतरात्मा ने तथ्यों के आधार पर सही माना और अपने आप को और अपनी अंतरात्मा को कभी धोखा नहीं दिया. आज के समय में यही सत्य है ! आप अपनी अंतरात्मा की आवाज पर काम कर पाएं , निर्णय ले पाएं वो सत्य है ! अन्यथा मुझे लगता है कि सदैव सत्य बोल पाना संभव नही लगता !! व्यवहारिक पोस्ट लिखी है आपने आदरणीय कैलाश शर्मा जी
ReplyDeleteसदैव सत्य बोल पाना संभव नही लगता !! लेकिन जहां तक संभव हो झुठ तभी बोलना चाहिए जब उससे किसी और को लाभ होता हो!
ReplyDeleteयदि कोशिश की जाए तो जरूर बोला जा सकता है। अच्छी रचना की प्रस्तुति।
ReplyDeletesidha-sada saty bola bhi nahi ja sakta in halaton me...lekin bola jata hai hi.
ReplyDeleteवर्तमान हालातों को मद्देनजर रखते हुए तो यही लगता है कि सत्य कि राह पर चना अंगारों पर चलने जैसा है। लेकिन यह वही बात है जैसा अपने लिखा सच झूठ क्या होता यह शायद हम तय नहीं कर सकते क्यूंकि हर एक व्यक्ति का नज़रिया अलग होता है। जैसे भूख लगना एक सार्वभौमिक सत्य है लिकिन भूख मिटाने के कई सत्य है। बहुत ही गहन चिंतन भरा विचारणीय आलेख।
ReplyDeleteअच्छा विमर्श ................
ReplyDeletehttp://savanxxx.blogspot.in
बेहतरीन पोस्ट !
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ReplyDeleteकैलाश जी आज के समय में सत्य बोलना बहुत ही बड़ी बात हो गयी है क्योंकि सत्य को सुनने की छमता बहुत ही कम लोगो में बची है आपकी ये रचना आज के समय के लिए एक संदेश है जो की बहुत ही लाभप्रद है आप अपने ऐसे ही लेखों को
ReplyDeleteशब्दनगरी पर भी प्रकाशित कर सकते हैं जिससे और भी पाठकों तक पहुँचे .........
बहुत बढ़िया आलेख! मुझे लगता है कि सत्य की विवेचना उसके स्तर पर भी निर्भर करती है. यथा, नैतिक, बौद्धिक, आध्यात्मिक और भौतिक! इन स्तरों की कसौटी पर ही सत्य के स्वरुप की सापेक्षता या निरपेक्षता की मीमांसा हो सकती है.
ReplyDeleteNice information
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ReplyDeleteValentine Day
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